स्कूल टाइम जिदंगी का सबसे खूबसूरत वक्त होता है. सुबह सुबह स्कूल जाना..वो प्रार्थना की लाइन में खड़े रहना और वो लंच टाइम की घंटी बजना…लंच टाइम हम सब बच्चों का फेवरेट टाइम होता था जाहिर है पढ़ाई से ब्रेक तो मिलता ही था और साथ ही होती थी सहेलियों से वो गपशप जिसमें कभी लगते थे हंसी के ठहाके तो कभी होती थी नोंक-झोंक. लेकिन एक ऐसी भी चीज थी जो उस लंच टाइम की याद आज भी दिलाती थी वो थी अलग अलग डब्बों के खुलते ही आने वाली वो अलग अलग जायकों की खूशबू. स्टील और प्लास्टिक की डब्बों में अलग अलग शक्लों और खूशबू का अचार..सबके अचार तो अलग थे ही,अलग अलग मसाले भी थे.वो थोड़े तीखे..चटपटे..चटक मसाले.कुछ अचार के मसाले ऐसे खट्ठे मीठे थे कि बिना सब्जी के चार पराठें खा लिए जाएं. उस वक्त कभी ये ख्याल नहीं आया कि ये अचार के मसाले इतने चटपटे क्यों लगते. लेकिन आज जब सोचो तो दो ही चीजें होती हैं एक तो मुंह में पानी आता है और दूसरा ये बात क्लियर हो जाती है कि अचार कोई भी हो असली किंग यही मसाले है जो अचार को देते हैं एक खास स्वाद और टेक्सचर.
पिछले ब्लॉग में मैंने अचार के इतिहास के बारे में बताया था कि हमारे प्लेट में खाने में चटकारा लाने वाला अचार कितना पुराना है. अचार के इतिहास के बारे में जानकारी इकट्ठा करते करते मुझे एक किताब के बारे में पता चला जिसका नाम है “Usha’s Pickle Digest”.इस किताब में एक हजार अचारों का जिक्र है, अब आप समझ सकते हैं कि अगर एक हजार अचार की वैरायटी आज हमारे बीच है तो एक हजार तरह के मसालों का मिश्रण भी है जो अचार का जायका बढ़ाते हैं.
भारत में पूरब से लेकर पश्चिम तक..उत्तर से लेकर दक्षिण तक खाने पीने की हमारे देश में कई वैरायटी है..सबका स्वाद अलग..सबकी खूशबू अलग लेकिन इन सबमें पड़ने वाला मसाला एक है जो इन्हें खास बनाता है. सिर्फ देश में ही नहीं हमारे मसाले विदेशोंं में भी कई सदियों से पसंद किए जाते हैं. पुराने समय के व्यापार के रूट्स को देखें तो हम पाएंगे कि हमारे मसाले साउथ एशिया..इजिप्ट और यूरोप तक जाते थे.हमारी इकनॉमी का एक मुख्य स्त्रोत ये मसाले ही थे जो आज भी देश विदेश में वैसे ही पसंद किए जाते थे जैसे उस वक्त किए जाते थे.
अचार में ये मसाले बस यूं ही नहीं मिलाए जाते बल्कि इसके पीछे काम करता है एक फार्मूला और ये फार्मूला है सही विधि.सही तकनीक और सही देख रेख. इसी फार्मूले पर टिका है अचार का वो खास स्वाद जो सादे से सादे खाने में भी जान डाल देता है. इस फार्मूले के साथ एक बात जिसका ध्यान देना आवश्यक के वो है साफ सफाई. मसाले साफ और धुले चाहिए तभी वो बेस्ट फ्लेवर दे पाएंगे. नानी दादी पिकल में हमने इसी फार्मूले का प्रयोग किया है. हमने अचार बनाने से पहले सभी मसालों को साफ किया है और फिर इस्तेमाल किया है उस तकनीक और विधि जो नानी दादी के वक्त से इस्तेमाल की जाती रही है.
nanidadipickle के मसाले वही मसाले है जो हम रोजमर्रा किचन में हम सब यूज करते हैं. हम अपने मसालों को पहले भूनते हैं और फिर उन्हें पुराने तकनीक से दरते या पीसते हैं ताकि आपको मिल सके वो जायका जो आपको आपकी नानी दादी की याद दिला दे. तो चलिए जानते है इन मसालों के बारे में..
सौंफ: खुशबूदार,मीठा और फ्रेशनस भरा स्वाद देता है।
राई: तीखा और चटपटा स्वाद देता है और अचार को देता है एक खास टेक्सचर.
मेथी: हल्का कड़वा और कसैला स्वाद देता है जिसे earthy taste भी कहा जाता है.
जीरा: गर्म और नमकीन स्वाद देता है।
धनिया: हल्का खट्टा और earthy taste देता है।
लाल मिर्च पाउडर: तीखापन और चटक लाल रंग देता है।
हल्दी: चटपटा पीला रंग और स्वाद देता है।
हींग: तीखा स्वाद और खास खूशबू साथ ही ये अचार के लिए नेचुरल प्रीजरवेटिव का काम करता है.
आमचूर: खट्टापन देता है।
कलौंजी: अनोखा earthy स्वाद देता है।
अजवाइन: थोड़ा खट्टा और खुशबूदार स्वाद देता है। साथ ही ये पाचन को भी दुरूस्त करता है.
तो आज ही आप इन मसालों के खास स्वाद से बने नानी दादी पिकल को आर्डर करिए और फिर से उस स्वाद की दुनिया में खो जाइए क्योंकि हमारा अचार आपको आपकी नानी दादी के अचार की याद दिलाने वाला है.